अमरेश कुमार सिंह, असिस्टेंट एडिटर ICN
भारतीय रीति रिवाज परंपरा प्रतिष्ठा के अनुसार मैं भी शादी के योग्य होता जा रहा हूं। वैसे परंपराओं के अनुसार मुझे अपने दिखावटी पद पर अब काम करना शुरू कर देना चाहिए। जैसे कि मैं किसी कंपनी में मैनेजर हूं तो मुझे खुद को कंपनी का मालिक बता देना चाहिए। मेरी कमाई ₹10000 हो तो माहौल ऐसा बनाना चाहिए कि वह 1000000 लगे।
आन, बान, शान इतनी शानदार बतानी चाहिए की मानो आपकी बेटी मेरी पत्नी बन कर नहीं आपकी वन टाइम इन्वेस्टमेंट बनकर मेरे घर आ रही हो। अब आपकी बेटी की खुशी मेरा और मेरी परिवार की हैसियत देखकर ही तय की जाएगी तो दहेज को सहेजने की तैयारी भी करनी होगी। हाँ, यह दिलचस्प होगा कि अपनी लाखों बुराइयों को छुपा कर के और अपनी दिखावटी सच्चाइयों को आपके सामने प्रस्तुत करके अपनी ब्रांडिंग की प्रतिष्ठा की कितनी ऊंची बोली हम लगवा सके।
आखिर जिस तरह से आपने जात-पात, समाज की मान, मर्यादा के नाम पर अपनी बेटी की पसंद का कत्ल किया है ठीक उसी तरीके से बचपन में हम पर किए गए एहसान ने हमारी भी पसंद का बहुत शिद्दत से कत्ल किया है। अब आरोप अपने माता-पिता अपने समाज पर क्या लगाएं क्योंकि आने वाले समय में मेरा परिवार मेरी मेहनत से तो चलने वाला है नहीं।
आखिर संस्कार समाज की सोच और एक दूसरे की जिंदगी में बेवजह दिलचस्पी रखने वाले लोग बेवकूफ थोड़ी हैं जो निकम्मे हो कर के भी अपनी जीविका चला रहे हैं। अपने पेट का पालन कर रहे हैं। जवानी की इस उम्र में हर युवा-मन की तरह हमारे भी मन में हिंदी फिल्म वाला प्यार पनपा था, लेकिन वही जात पात की जिम्मेदारी, समाज का बोझ, आदि इत्यादि।
कैरियर की बात करें तो भविष्य एक क्रांतिकारी और सुनहरी प्रतिरूप की छाया स्पष्ट दिखाई दे रही है, लेकिन रिस्क नाम की भी कोई चीज होती है। संघर्ष के दौर में अगर हम हार गए तो जाहिर सी बात है कि आप की बेटी का क्या होगा। और जीत गए तो वैसे भी आपने जिंदगी में ऐसा कब सोचा होगा कि आपकी बेटी भी दुनिया के उन सफल लोगों में से एक बने जो इस धरती पर मिसाल है। आखिर सामान्य जीवन नाम की भी कोई चीज होती है, जिसका अपना ही मजा है। शादी करो, बच्चे पैदा करो, परिवार चलाओ, बूढ़े हो जाओ, फिर मर जाओ। खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाएंगे, गुमनाम होने का गम क्या है जब कभी नाम ही ना हुआ।
लेकिन इस दौरान आपको एक नसीहत जरूर देना चाहूंगा, यह जो दहेज के लिए आप सिर्फ बेटे के माता पिता या लड़के पर आरोप मढ़ देते हो यह सरासर गलत है। अपनी बेटी या बेटे की पारिवारिक जिम्मेदारी और जरूरतों के नाम पर जब आपने उनके सपनों का कत्ल किया, उनकी कीमत लगाई आप उसके कर्ज से दूर नहीं भाग सकते। उनकी खुशी में सरीक होने का हक जो आपको दिल से मिलना चाहिए था वह तो आप बहुत पहले खो चुके हैं। हाँ, जिस जिम्मेदारी ने आपको हमारे सपने को मारने का हक दिया, उसी जिम्मेदारी के तहत हम भी आपको अपनी खुशी में शामिल करने से पीछे नहीं हटने वाले। लेकिन दिल का वो रिश्ता जो हमारी आत्मा के द्वारा आपको विशेष सम्मान देने वाला था, वह तो आप बहुत पहले खो चुके हैं। उस सम्मान की उम्मीद भी मत करिए।
ऐसे और भी निजी बातें हैं जो आपके आत्म सम्मान को ठेस पहुंचा सकती है। लेकिन दहेज के नाम पर जो आप अपनी पगड़ी उछाल रहे और अपनी बेटी को समाज का दूसरा प्राणी होने का एहसास दिला रहे हैं। इसके जिम्मेदार सिर्फ आप हैं और आपकी वह मरी हुई सोच है, जिसने जिंदगी से मोहब्बत करना ही भुला दिया है। आज जब हम युवाओं की जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला आपके समाज में आपकी अपनी इज्जत, मान मर्यादा के सामने दम तोड़ रही है,ऐसे में जब हमारी खुशियां आपके लिए कोई मायने नहीं रखती तो बेहद अफसोस के साथ मुझे कहना पर रहा है तो आपके दिए हुए दिखावटी संस्कार, मान मर्यादा, सम्मान को आगे ले जाने की जिम्मेदारी भी हमारी ही होगी।
बुढ़ापे का वह कष्टकारी समय जहां आपको एक बहू की नहीं एक बेटी की जरूरत होगी वह आपके जीवन में कभी नहीं आएगा। क्योंकि रिश्ता कितना भी अपना हो, जब दिल में खटास भर आती है तो कहीं ना कहीं उसका जहर अपनी छाप छोड़ जाता है। बुढ़ापे में आप स्वर्णिम समाप्ति की उम्मीद मत करिए। क्योंकि मां-बाप जैसा पवित्र रिश्ता अपने बच्चों की खुशी को पैसे से तोल देता है तो बच्चे भी आप की दी हुई सी को आगे बढ़ा कर आप पर आजमा जाते हैं। जब तक आपको खुशी की कीमत का एहसास होता है तब तक बहुत देर हो चुका होता है। जिस खुशियों के लिए आपने न जाने कितनी कुर्बानियां दी वही मातम बनकर आपके आंगन की रौनक बन जाती है।
जहां आप एक पल की खुशी को तरसने लगते हैं। आज रिश्तो की दूरियां इस बात की साक्षी है कि कहीं ना कहीं आपने अपने बच्चों के सपनों का कत्ल किया, कहीं ना कहीं आपने हमें जीवन देकर मार दिया, हमारी सांसे तो चली लेकिन हमारी आत्मा एक जिंदा लाश बनकर रह गई। एक ऐसी लाश जो हर बात की कीमत लगाता है, हर बात को अपनी हैसियत से तोल जाता है। आखिर यह संस्कार भी तो आप की ही देन है। अब हम युवा पीढ़ी इस पर आंसू बहाए, आपको बद्दुआएं दे, या अपनी नसीब का मंत्र मानकर समझौता कर ले, बस यही बात समझते समझते आधी जिंदगी बीत जाती है और जो जिम्मेदारी आप के सर पर थी वह हमारे सर भी आ जाती है।
आखिरी शब्दों में एक गुजारिश करना चाहूंगा एक बार अपने बच्चों को अपनी जिंदगी जी लेने दीजिए, एक बार जात पात से बाहर निकल कर देखिए, एक बार उन्हें अपना कर देखिए, वह सपना जो आप अपने बेटे में ढूंढना चाह रहे थे उसे अपनी बेटी की जीवनसाथी में ढूंढ कर देखिए, फिर देखिए की खुशियां कैसे आपके दामन को जिंदा ताजमहल बना देती है। दुनिया का एकमात्र ताजमहल जहां मुमताज और शाहजहां विरासत की ताजपोशी संभाले और आपके सपनों की बात साथ पूरी दुनिया में साबित करें। और अपनी बेटे की भी कीमत ना लगाते हुए उन्हें भी किसी के सपनों का बेटा बन जाने दीजिए, मेरा दावा है की आप पूरी जिंदगी महज एक बूंद गम के आंसू को तरस जाएंगे, एक ऐसी तरस जिसका आपको कोई अफसोस नहीं होगा। बाकी आम जिंदगी तो हम सभी जी ही रहें हैं।